क्यों हो जाते हे अवसाद और तनाव दूर पक्षियों की चहचहाहट सुनकर
इस आधुनिक दुनिया में सिर्फ प्रकृति की बाते ही रह गई है। इंसान प्रकृति से जूड़ना चाहता है लेकीन इस भागमभाग में इसको टाइम कहां है। इसका भुगतान भी साथ इंसान कर रहा है। डिप्रेशन और तनाव का शिकार होता जा रहा है। उसके एक वक्त चाहिए प्रकृति की गोद में रहने के लिए। आपने बायोफीलिया के बार में सुना ही होगा और इसकी अवधारणा साइकोलॉजिस्ट एरिक फ्रोम ने दी थी, और फिर अभी वर्तमान में एक संगीतकार बिजोर्क ने इससे प्रेरित होकर अपने नये म्यूजिक एलबम का नाम बायोफीलिया रखा है।
कुदरत के साथ रहना मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर लाभ होता है। आपको बता दे की वैज्ञानिक लगातार इस विषय पर शोध कर रहे हैं कि इंसानी दिमाग पर बायोफीलिया का क्या प्रभाव पड़ता है। इस शोध से ज्ञात हुआ कि पक्षियों के गाने से भी हमारे दिमाग पर गहरा और अच्छा असर पड़ता है। पक्षियों के गाने से हमारे दिमाग पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकीन आधुनिक की चीज़ों के शोर में पक्षियों की मधुर आवाज दब गई है। इस शोरगुल से शारीरिक और मानसिक समस्याएं लगातार पैदा होती जा रही हैं।
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जैसा की हम जानते है की पक्षियों की आवाज़ कुदरत का बनाया हुआ एक मधुर संगीत है। यह अपने आप में एक अलग ही माहौल रखता है। जब भी इसे सुनते हैं, दिमाग के कुछ विशेष हिस्से बहुत ही अच्छे तरीके से सक्रिय हो जाते हैं जिससे दिमाग में सकारात्मक विचार उत्पन्न करने वाले हॉर्मोंस स्त्रावित होते हैं। इसलिए शोधकर्ता कहते हैं कि परिंदो की चहचहाहट सुनना यह एक दवा की तरह काम कर सकती है। जिससे इंसान को अवसाद यां तनाव से ग्रसित नहीं होना पड़ेगा।
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