भारत के इस गांव में लगता है दूल्हे का बाजार, लगती है बोली
भारतीय परंपरा में शादी एक त्योहार की तरह होती है, जहां पूरा परिवार और रिश्तेदार इकट्ठा होते हैं। हर राज्य में अलग-अलग तरह की शादियां होती हैं। आज हम आपको बताएंगे कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक ऐसी जगह है जहां दुल्हनों का बाजार लगता है। यह मजाक नहीं बल्कि सच्चाई है। ऐसा ही एक बाजार भारत के बिहार राज्य के मधुबनी जिले में लगता है, जहां दूल्हे बिकने के लिए खड़े रहते हैं। लड़कियां बोली लगाती हैं और अपनी बेटी की शादी करा देती हैं। यह बाजार दशकों से चला आ रहा है और यहां के लोग इसे एक परंपरा के रूप में रखते हैं।
इस बाजार का क्या नाम है
इसका नाम यह बाजार सौराठ है, वहां बैठक होती है। यह हर साल बिहार के मधुबनी में होता है। यह बाजार जून से जुलाई तक लगता है, जहां विवाह योग्य लड़के-लड़कियां आते हैं। इस बाजार में दूल्हा खड़ा होता है और लड़कियां उससे उसकी योग्यता, उसका घर, उसका परिवार और उसकी आय के बारे में पूछती हैं। जिसके बाद वे तय करते हैं कि दूल्हे को पसंद किया जाए या उसके लिए बोली लगाई जाए। अगर उन्हें लड़का पसंद आता है तो वे उसके गले में तौलिया डाल देती हैं और सबको पता है कि उन्होंने दूल्हा चुन लिया है।
सारी जिम्मेदारी पुरुष सदस्यों की होती है
इस बाजार में पुरुष मुख्य भूमिका निभाते हैं। यहां केवल पुरुष ही अपनी लड़की के लिए वर का चुनाव करते हैं और उसके बाद दोनों परिवारों के पुरुष आपस में चर्चा करते हैं और तय करते हैं कि शादी में कितना खर्च आएगा और लड़की को लड़के को क्या दहेज या उपहार देना होगा। लड़की की शादी पर कितना पैसा खर्च होगा यह इस बात से तय होता है कि लड़का क्या करता है और कितना कमाता है।
यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है
सौरठ सभा कही जाने वाली यह दूल्हा-दुल्हन बाजार आज से नहीं खुल रही है। बल्कि यह पिछले 700 सालों से चला आ रहा है। इसकी शुरुआत कर्नाटक राजवंश के राजा हरि सिंह ने की थी। उन्होंने यह इसलिए शुरू किया ताकि वे अलग-अलग गोत्रों में लोगों की शादियां तय कर सकें और इन शादियों में दहेज न हो। हालांकि, बदलते समाज ने भले ही शादियों की इस परंपरा को जारी रखा हो, लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार इसमें दहेज जरूर जोड़ा गया।
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