आखिर क्यों है एलोरा का कैलाश मंदिर भारत का सबसे रहस्यमय मंदिर

हमारा देश भारत दुनिया का शायद एकमात्र ऐसा देश है जो इतनी तेजी से प्रगति कर रहा है लेकिन आज भी अपनी जड़ों से उतनी ही मजबूती से जुड़ा हुआ है, यहां अनेकों धर्म को मानने वाले अनेकों लोग हैं जो अपनी पूजा अर्चना के लिए विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। यूं तो हर एक देवालय अपने आप में खास होता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो इतना अनूठा है कि इसके मानव द्वारा निर्मित होने पर शक होता है और बहुत से लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर को इंसानों ने किसी दैवीय शक्ति की मदद से बनाया होगा तो चलिए दोस्तों जानते हैं इस मंदिर की खासियत के बारे में।

महाराष्ट्र के एलोरा केव्स को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में से एक का दर्जा प्राप्त है और इसी जगह मौजूद है कैलाश मंदिर जो कि आधुनिक आर्किटेक्चर एक्सपर्ट और इतिहासकारों के लिए एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है। जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भव्य इमारत या मंदिर को बनाने के लिए पत्थर के ब्लॉकस को एक के ऊपर एक बारंबारता से जोड़ा जाता है, जिससे धीरे-धीरे वह इमारत अपना आकार लेने लगती है इसी पद्धति से इजिप्ट के पिरामिड और द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना जैसी भीमकाय चीजों को बनाया गया था। लेकिन एलोरा का कैलाश मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसे पत्थर को काटकर सिंगल पीस में बनाया गया था यही बात इस मंदिर से जुड़ी सभी रहस्य की जड़ है।

पत्थर के ब्लॉक को जोड़कर किसी इमारत को बनाने की टेक्निक को कट इन टेक्निक कहा जाता है लेकिन कैलाश मंदिर को इस टेक्निक के बिल्कुल उलट कट आउट टेक्निक से बनाया गया था इस मंदिर को एक पत्थर को ऊपर से नीचे की तरफ काट कर बनाया गया है। एक जैसे एक मूर्तिकार पत्थर को तराश कर मूर्ति बनाता है उसी तरह एक पत्थर को काटकर यहां सुंदर स्तंभ, द्वार, गुफाएं और अनगिनत मूर्तियों को बेहद सुंदर तरीके से उकेरा गया है।

आर्कियोलॉजिस्ट के अनुसार एक पत्थर को काटकर ऐसा मंदिर बनाने के लिए लगभग 4 लाख टन से ज्यादा पत्थर को काटकर यहां से निकाला गया होगा और इतनी बड़ी मात्रा में पत्थरों को काटने और हटाने में कई दशकों का समय लगेगा लेकिन अगर रिकार्ड्स की बात करें तो इतिहास यह कहता है कि कैलाश मंदिर को बनाने में केवल 18 वर्ष का समय लगा था इसके अलावा इस मंदिर में बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए जल निकासी सिस्टम और एक मंदिर को दूसरे मंदिर से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण भी किया गया है, जिससे यह साफ पता चलता है कि पत्थर को काटना शुरू करने से पहले ही बेहद जटिल प्लानिंग को अंजाम दिया गया था। भला उस समय में बेहद सीमित गणित और इंजीनियरिंग ज्ञान के बावजूद इतना साधा हुआ आर्किटेक्चर प्लान कैसे तैयार किया गया होगा।

इस मंदिर की तह में कुछ रहस्यमई गुफाएं मौजूद है जिनका दूसरा छोर कहां खुलता है यह कोई नहीं जानता। अब हम एक विश्लेषण करके आपको यह समझाते हैं कि आखिर यह मंदिर इतना रहस्यमय क्यों है। इस विश्लेषण के लिए हम मान लेते हैं कि 18 वर्ष तक मजदूरों ने रोज 12 घंटे बिना रूके बिना थके काम किया होगा तो भी 18 साल में 4 लाख टन पत्थर को हटाने के लिए हर साल 22,222 टन पत्थर को हटाया जाता होगा जिसका मतलब यह होता है कि 60 टन पत्थर को रोज हटाया जाता होगा और इसका अर्थ यह हुआ कि लगभग 5 टन पत्थर को यहां से हर घंटे निकाला जाता होगा 5 टन पत्थर हर घंटे निकालना फिर उसे तराशना सदियों पहले तो दूर आज के आधुनिक समय में भी असंभव है।

आज के समय में इस तरह के विशाल निर्माण को अंजाम देना पड़े तो उसके लिए इंजीनियरिंग मॉडल, कंप्यूटर, अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर, विशालकाय क्रेन और अन्य मशीन की आवश्यकताएं पड़ेगी और इसके बाद भी महज 18 साल में ऐसा निर्माण करना बेहद मुश्किल होगा तो फिर आठवीं शताब्दी में बिना आधुनिक मशीनों की सहायता से इसे कैसे बनाया गया होगा यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आज तक कोई भी दे नहीं पाया है। तो क्या कोई ऐसी शक्ति थी जो उस समय के मानव की क्षमता और कार्यकुशलता के मामले में बहुत आगे थी।

सन 1682 में तत्कालीन शासक औरंगजेब ने हजार लोगों की एक सैनिक दस्ते को इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट करने का काम सौंपा था लेकिन हजार लोगों का यह सैनिक दस्ता लगातार तीन साल तक मशक्कत करने के बावजूद इस मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा पाया और जब औरंगजेब को यह समझ आया किस मंदिर को नष्ट करना नामुमकिन है तो उसने हार मार ली और मंदिर को नष्ट करने का काम रोक दिया गया। इस तथ्य से एक बार फिर यह बात साबित होती है की वाकई कुछ ना कुछ ऐसा जरूर रहा होगा जो उस समय की टेक्नोलॉजी से बेहद आगे था और उसी की मदद से यह मंदिर बनकर तैयार हुआ था एलोरा के इस बेहद खूबसूरत मंदिर के बारे में आपकी क्या राय है।

Comments are closed.