जानें, क्या है अमरनाथ यात्रा का महत्व और बर्फ की शिवलिंग का रहस्य
48 दिन तक चलने वाली इस यात्रा में हजारों की तादाद में श्रृद्धालु पहुंचते है। आइए जानें क्या है इस यात्रा का महत्व अमरनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था बहुस्तरीय सुरक्षा घेरे में जम्मू के भगवती नगर आधार शिविर अमरनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक महत्व और पुण्य की यात्रा है। जिसने भी इस यात्रा के बारे में जाना या सुना है, वह कम से कम एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।
अमरनाथ गुुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर दूर है। समुद्र तल से यह क्षेत्र 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बाबा अमरनाथ की गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहां पहुचंने के दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है।
हिमालय की पर्वत श्रेणियों में स्थित बाबा बर्फानी की यह यात्रा बहुत कठिन है और इसमें जाने के लिए किसी भी इंसान का मेडिकली फिट होना बहुत जरूरी है।
अमरनाथ यात्रा की प्रमुख बात यह है कि यहां शिवलिंग स्वयंभू है यानी स्वयं निर्मित होता है। इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है।
हिमालय की गोदी में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे ज़्यादा आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। पवित्र गुफा श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 13 हज़ार फ़ीट ऊंचाई पर है। पवित्र गुफा की लंबाई (भीतरी गहराई) 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है। अमरनाथ की ख़ासियत पवित्र गुफा में बर्फ़ से नैसर्गिक शिवलिंग का बनना है। प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है। स्थान से जुड़ा एक बड़ा ही रोचक प्रसंग प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इसी पवित्र स्थान पर शिव जी ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। कहते हैं कि कथा सुनते-सुनते पार्वती जी को नींद आ गई।
कहा जाता है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस शिवलिंग का आकार भी घटता बढ़ता जाता है। अमरनाथ का शिवलिंग ठोस बर्फ से निर्मित होता है जबकि जिस गुफा में यह शिवलिंग मौजूद है, वहां बर्फ हिमकण के रूप में होती है।
अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ बर्फ़ के लिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। सावन की पूर्णिमा को यह पूर्ण आकार में हो जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा हो जाता है। हैरान करने वाली बात है कि शिवलिंग ठोस बर्फ़ का होता है,
इसके बाद शेषनाग झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सांपों को भी उतार दिया था। गणेश जी को उन्होंने महागुणस पहाड़ पर छोड़ दिया था। इसके बाद पंचतरणी नाम की जगह पर पहुंचकर भगवान शिव ने पांचों तत्वों को भी त्याग दिया था।
माना जाता है कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमरता का मंत्र सुनाया था उस समय गुफा में उन दोनों के अलावा सिर्फ कबूतरों का एक जोड़ा मौजूद था। कथा सुनने के बाद कबूतर का जोड़ा अमर हो गया था। आज भी अमरनाथ गुफा में कबूतर का वो जोड़ा दिखाई देता है।
अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ की गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर व ऊंचाई 11 मीटर है।
अमरनाथ यात्रा के लिए दो रास्ते हैं। एक पहलगाम से और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से बलटाल का रास्ता दुर्गम है। सरकार पहलगाम से ही अमरनाथ जाने का निर्देश देती है।
गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। यहीं पर ऐसी जगह है, जहां टपकने वाली हिम बूंदों से करीब दस फीट ऊंचा शिवलिंग बनता है।
खुद से बनने वाले इन शिवलिंगों के पीछे क्या कोई वैज्ञानिक कारण भी है? क्या ये पृथ्वी पर मौजूद किसी खास शक्ति से बनते हैं? वैज्ञानिकों का कहना है कि हां, संभव है कि किसी विशेष शक्ति की वजह से ऐसा हो सकता है। कैलाश पर्वत या तिरुवन्नमलाई में निर्मित प्राकृतिक आकृति शिवलिंग की तरह ही दिखती है। ये प्रकृति की ही कला है कुछ घटनाओं की वैज्ञानिक कुछ हद तक व्याख्या कर पाते हैं लेकिन अमरनाथ के शिवलिंग के रहस्य को पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है। अमरनाथ की बर्फ से बनी शिवलिंग पहाड़ के छिद्रों से गुफा में गिरती बर्फ के पानी की बूंदों से बनती है लेकिन यह अब भी एक हैरत की बात है कि यह शिवलिंग एक नियत मौसम में ही कैसे बनता है।
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